भोपाल ।  मध्य प्रदेश में 44 लाख 23 हजार बेटियों को लाड़ली लक्ष्मी योजना का लाभ दिया जा रहा है, पर लगभग 1500 बेटियां ऐसी भी हैं, जिन्हें पात्र होते हुए भी यह लाभ नहीं मिल रहा है। विभाग उनके प्रकरण का निराकरण पिछले तीन साल में नहीं कर पाया है।

बिना निर्णय लौटा दी नोटशीट

पहले विभाग के मैदानी अधिकारियों ने प्रकरण उलझाए रखे और बेटियों ने जैसे-तैसे राज्य स्तर पर अपनी बात रखी तो विभाग के अपर मुख्य सचिव कार्यालय ने करीब एक वर्ष तक नोटशीट रखी, जिसे बिना किसी निर्णय के संचालनालय को लौटा दिया गया।

आवेदन नहीं कर पाए अभिभावक

ये वे बेटियां हैं, जिनका जन्म एक अप्रैल, 2007 (लाड़ली लक्ष्मी योजना लागू होने की दिनांक) के ठीक बाद हुआ लेकिन बेटियों के अभिभावक किन्हीं कारणों से आवेदन नहीं कर पाए। कुछ मामले ऐसे भी हैं जिनमें पात्रता की परिभाषा के फेर में बेटियों को लाभ नहीं मिला है। अधिकारी कभी कहते हैं कि पहले प्रसव से जन्म लेने वाली बेटी को लाभ दिलाने के लिए भी परिवार नियोजन जरूरी है, तो कभी कहते हैं दो संतान के बाद परिवार नियोजन अपनाना था।

पहले नहीं थी योजना की जानकारी

योजना का लाभ दिलाने की मांग कर रहीं बेटियों मेकल, गरिमा और उनके अभिभावक प्रीति शर्मा, संतोष पटेल का कहना है कि पहले उन्हें योजना की जानकारी नहीं थी। आंगनबाड़ी केंद्रों में भी ठीक से मदद नहीं की गई और जब बेटी के जन्म को एक वर्ष से अधिक समय हो गया, तो आवेदन नहीं लिए गए।

अब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से गुहार

ऐसी 1500 बेटियां विकास यात्रा के इस दौर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से गुहार लगा रही हैं कि उन्हें भी योजना का लाभ मिलना चाहिए। दरअसल, योजना पर लोगों का भरोसा तब बढ़ा, जब सरकार ने लाड़लियों को छात्रवृत्ति देनी शुरू की। उन्हें उच्च शिक्षा भी दिलाने का वादा किया।

छूटे हुए नाम जोड़ने की कवायद

अब लोग चाह रहे हैं कि उनके छूटे हुए नाम जुड़ जाएं। ऐसे कई मामलों में पहले भी नाम जोड़े गए हैं। बता दें कि योजना प्रारंभ करते समय यह प्रविधान था कि पहले प्रसव से बेटी के जन्म के बाद परिवार नियोजन कराना होगा। जिसे वर्ष 2008 में बदलकर दो संतान के बाद परिवार नियोजन अनिवार्य किया गया। अधिकारियों ने ही ले लिया निर्णय वर्ष 2008 में योजना की शर्त में संशोधन के बाद विभाग के आला अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही यह निर्णय ले लिया कि इससे पूर्व के प्रकरणों पर अब विचार नहीं किया जाएगा। दरअसल, पुराने प्रकरणों पर 155 करोड़ रुपये खर्च आ रहा है। अधिकारियों ने इस निर्णय की जानकारी विभागीय मंत्री (मुख्यमंत्री) को भी नहीं दी। जबकि वर्ष 2008 के बाद के प्रकरणों में अब तक निर्णय लिए गए हैं।

इनका कहना है

करीब डेढ़ हजार प्रकरण लंबित हैं, जो शासन को भेजे गए थे। ये वापस आए हैं, कुछ संशोधन के साथ जल्द ही फिर से भेजे जाएंगे।

- डा. रामराव भोंसले, संचालक, महिला एवं बाल विकास विभाग